दे सखे सोडून तू हे आरशाला मनविणे
दीदार खुद के हुस्न का, कर ले मेरी इन आँखोमें
गुच्छ पुष्पांचे सुगंधी, हार अपुली मानती
खूशबूसे साँसोंके तेरी, चाँदनी जो महकती
ओठ डाळिंबी तुझे हे, पाहूनी वाढे तृषा
चूमू इन्हें यह सोचकर, छाये शराबीसा नशा
नागिणीसम घेत वळसे, वेणी नितंबांवर डुले
घायाल होना तय है, कातिल; जुल्फें है या चाल है
बहरे तुझे यौवन सखे, लावण्य ह्र्दया मोहवे
छायी जो बाग ए बहार; मौसम नही; तेरा हुस्न है
------ मनिष मोहिले
दीदार खुद के हुस्न का, कर ले मेरी इन आँखोमें
गुच्छ पुष्पांचे सुगंधी, हार अपुली मानती
खूशबूसे साँसोंके तेरी, चाँदनी जो महकती
ओठ डाळिंबी तुझे हे, पाहूनी वाढे तृषा
चूमू इन्हें यह सोचकर, छाये शराबीसा नशा
नागिणीसम घेत वळसे, वेणी नितंबांवर डुले
घायाल होना तय है, कातिल; जुल्फें है या चाल है
बहरे तुझे यौवन सखे, लावण्य ह्र्दया मोहवे
छायी जो बाग ए बहार; मौसम नही; तेरा हुस्न है
------ मनिष मोहिले