Sunday, November 29, 2015

तेरा इसक

जो घुल गया हैं सासोंमें
तेरे ही इसक का रंग हैं

सुबह की लाली जैसा
तरोताजा हरियाली जैसा
आकाश की निलीमा जैसा
गुलाबी सा गुलाब जैसा
घोल दूॅं इसक के पानी में
तो यह रंग सारे दिखाता हैं
जो घुल गया हैं सासोंमें
तेरे ही इसक का रंग हैं

जो घुल गयी हैं सासोंमें
तेरे ही इसक की खूशबू हैं

भिनी मिट्टीके सुगंध जैसी
फूलोंसे लदे बागानोसी
तेरी गीले घने जुल्फों जैसी
वादीयोंमें झूमती हवाओंसी
घोल दूॅं इन्हें मेरी साॅंसोंमें
तेरा बदन मुझमें महकता हैं
जो घुल गयी हैं सासोंमें
तेरे ही इसक की खूशबू हैं

जो घुल गयी हैं सासोंमें
तेरे ही इसक की आवाज हैं

पछियोंके किलबिलाहटसी
झरनोंकी झनझनाहटसी
मेघोंके पखवाजोंसी
बारीश की रिमझिम जैसी
घोल दूॅं इन्हे जहम में मेरी
लबोंपर इसकही आता हैं
जो घुल गयी हैं सासोंमें
तेरे ही इसक की आवाज हैं

जो घुल गया हैं सासोंमें
तेरे ही इसक का रंग हैं

-------  © मनिष मोहिले
@manishmohile.blogspot.com

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