Tuesday, October 20, 2015

पुरवाई


पुरवाईका झोका आया
बीते दिनोंकी गलियोंसे
नजरोंसे जो दूर हुवे हैं
मिलवाया उन अपनोंसे

खेल दोस्त वह बचपन के
और शरारतें बचपनकी
ऊनके साथ लाई पुरवाई
मासूम हँसी वह बचपनकी

जवानी का वह रंगीलापन
और गहराई इशका दी
एक अजीब उदासी छाई
सुरमईसे ऊन शामोंसी

एक सुकूँसा फिरभी दिलमें
जो कहता हैं पुरवाईसे
शुक्रगुजार रहूँगा तेरा
मिलवाया जो अपने आपसे

-------  © मनिष मोहिले
@manishmohile.blogspot.com

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