ईश्क वह खेल नहीं, जो छोटे दिलवाले खेले
रुह तक काॅंप जाती हैं, सदमे सहते सहते
ईश्क वह बारीश नहीं, जिसमें कोई भी भीग जाये
हर साॅंस मुश्किल होती हैं, सैलाब में बहते बहते
ईश्क सिर्फ चांदनी नही, की ठंडक ही दे हमेशा
रोम रोम झुलसता हैं, अगन में जलते जलते
ईश्क सिर्फ मेहबूबा का आॅंचल नहीं, की ओढ ले
के सारे इर्दगिर्द होके भी, बेपनाह महसूस होता हैं
ईश्क वह जन्नत नहीं, की मिल गयी यहीं पे
इसे पाने की जुनून में कभी, दम भी तोडना पडता है
------- © मनिष मोहिले
@manishmohile.blogspot.com
रुह तक काॅंप जाती हैं, सदमे सहते सहते
ईश्क वह बारीश नहीं, जिसमें कोई भी भीग जाये
हर साॅंस मुश्किल होती हैं, सैलाब में बहते बहते
ईश्क सिर्फ चांदनी नही, की ठंडक ही दे हमेशा
रोम रोम झुलसता हैं, अगन में जलते जलते
ईश्क सिर्फ मेहबूबा का आॅंचल नहीं, की ओढ ले
के सारे इर्दगिर्द होके भी, बेपनाह महसूस होता हैं
ईश्क वह जन्नत नहीं, की मिल गयी यहीं पे
इसे पाने की जुनून में कभी, दम भी तोडना पडता है
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